भीतर उतरिए, जहां शांति भी है, समृद्धि भी और परम आनंद भी!
भीतर उतरिए, जहां शांति भी है, समृद्धि भी और परम आनंद भी!
सिर्फ मौन साधकर बैठना ही योग नहीं है। बल्कि अपने अहम का त्याग कर अपने प्रभु के प्रति श्रद्धा भाव से पूर्ण समर्पण कर दिव्यता युक्त होकर ईश्वरीय और देवत्व वाले कार्य को जब करते हैं तो ये सभी कार्य योग बन जाते हैं। जिससे आप अपने भीतर शांति प्रसन्नता और स्थिरता से जुड़कर अपने मन को नियंत्रित कर अपने भीतर अपने चैतन्य में अपने आत्म स्वरूप में टिकते हुए उस स्थिति में पहुंचकर योगरूढ़ हो जाते हैं। तब आप अपने आनंद से युक्त होकर अपने भीतर की समृद्धि से भी युक्त हो जाते हैं। इसलिए अपने मन को नियंत्रित कर परमात्मा में लगाते हुए जाप करें,और जाप करते-करते परमात्मा में खो जाएं अपनी चेतना को परम चेतना से जोड़ते हुए परमानंद खुशी को महसूस करें तथा स्वयं को सौभाग्यशाली निरोगता और समृद्ध महसूस करें। ईश्वरीय और देवत्व कार्य ही योग है। योगरूढ़ होकर अपनी चेतना को परम चेतना से जोड़ें।

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