तुम वही हो जिसकी तुम्हें तलाश थी

 तुम वही हो जिसकी तुम्हें तलाश थी


जब हम साधना करते हैं। तो हमारे अंदर ज्ञान और वैराग्य दोनों ही जागृत होते हैं। जिससे हमारा आत्म साक्षात्कार होता है और हम मौन में बैठकर इसका आनंद लेना शुरू करते हैं। जिसके प्रभाव से हमारा कल्याण होता है। परमात्मा परम मौन है जहां परम शांति विराजती है और शांति में परमात्मा का आनंद विराजता है। जब हम चुप रह कर मर्यादा में रहते हुए बोलते हैं तभी हमें उस परम आनंद की प्राप्ति होती है। जिससे हमारा लोक परलोक दोनों सिद्ध होता है वही धर्म है। हम इस संसार में अपने कर्मों का भोग भोगने और अपवर्ग मोक्ष को प्राप्त करने के लिए ही आए हैं। हमारे कर्म ही शब्द हैं जो हमारे अंतिम क्षणों में याद रखे जाएंगे। मौन को साधने वाले बनें क्योंकि आपके द्वारा की गई भक्ति जन्म जन्मांतर तक व्यर्थ नहीं जाती है बल्कि आपकी शक्ति बनकर आपके जीवन यात्रा में आती है और जब आपकी भक्ति चरम तक पहुंच जाती है तो आप स्वयं भी आनंद लेते हैं और दुनिया को भी प्रकाश देते हैं जिससे आपके ऊपर परमात्मा की कृपा होती है।

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