सुख बाहर नहीं, भीतर है–लेकिन भटक गए हैं हम दिखावे की दौड़ में!

 सुख बाहर नहीं, भीतर हैलेकिन भटक गए हैं हम दिखावे की दौड़ में!

श्रेष्ठ लोग इकट्ठे और सक्रिय रहे ,लेकिन भले लोग अहंकार और आलसी स्वभाव से ग्रसित रहते हैं हर एक आदमी का सुख भीतर है और ढूंढ रहे हैं बाहर ।हम विदेशी चकाचौंध में भटक जाते हैं अपनी प्रसन्नता का मापदंड ही लोगों ने अलग ढंग से बना रखा है मन बदलाव में रहना चाहता है भारतीय मापदंड प्रसन्नता का अलग है जो धर्म सम्मत भी है और वास्तविकता है ।हम भारतीय बनावटीपन में नहीं जीते। हम हर चीजों को पैसे से नहीं खरीदते ।जैसे विद्या और स्वास्थ्य।




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